Wednesday, March 12, 2014

भारतीय महिला मुक्ति दिवस

सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर नवदलित महिला सम्मेलन में महिलाओ की एवं महिला अधिकारों के लिए कटिबद्ध पुरुषो की व्यापक एकता की पैरवी की जरूरत महसूस की गयी बिना इनकी एकता के महिला मानवाधिकारों की स्थापना संभव नहीं है | सम्मेलन में महिला हिंसा के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखने और निडर होकर उनके खिलाफ आवाज उठाने के लिए 2 महिलाओं व 1 पुरुष को दलित महिलाओं के अधिकारों के समर्थन और सतत संघर्ष में अतुलनीय योगदान के लिए जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया |

वाराणसी, सावित्री बाई फूले महिला पंचायत एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति/जनमित्र न्यास द्वारा वाराणसी के मलदहिया स्थित सरदार पटेल धर्मशाला में सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि 10 मार्च को भारतीय महिला मुक्ति दिवस के रूप में मनाया | सावित्री बाई फुले भारत की पहली शिक्षित महिला रही जिन्होंने अपने पति ज्योति बा फुले से शिक्षा ग्रहण कर लडकियों के लिए पहला स्कूल खोला (सन1848 में) लडकियों को शिक्षा देने के साथ साथ उन्होंने परित्यागता, विधवा, एकल महिलाओं के अधिकारो के लिए आवाज उठाई और पितृसत्तात्मक सामन्ती व्यवस्था को चुनौती देते हुए महिला अधिकारों की सशक्त पैरवी की | भारत में लडकियों के लिए शिक्षा की अलख जगाने और महिलाओं के मानवीय गरिमा और सम्मान की पैरोकार सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि को भारतीय महिला मुक्ति दिवस के रूप में मनाकर हम उनके संघर्षों को याद करते हुए संकल्प लेते कि महिलाओं के सशक्तिकरण एवं समग्र विकास के लिए सतत संघर्ष जारी रखेंगे | इसी क्रम में बदलते परिवेश में महिला अधिकारों की पुरजोर पैरवी के लिए पिछले एक पखवारा में अभियान चलाकर विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के साथ कई अलग-अलग बैठकें, रैली सभाए की गयी | आज 10 मार्च को भारतीय महिला मुक्ति दिवस पर नवदलित महिला सम्मेलन किया गया जिसमें वाराणसी सहित पूर्वांचल के विभिन्न जिलो इलाहाबाद, सोनभद्र, चंदौली, जौनपुर, मिर्जापुर से लगभग 300 से अधिक महिलाये शामिल हुई |

कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुए सावित्री बाई फूले महिला पंचायत के संयोजिका श्रुति नागवंशी ने कहा कि हम पुरुषसत्तात्मक सोच के खिलाफ है, किसी पुरुष के नहीं | भारत ही नहीं पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे के नागरिको जैसा व्यवहार किया जाता रहा है | उनके साथ हिंसा के विभिन्न वीभत्स रूप लगातार सामने आते रहे है | माहौल चाहे युद्ध का हो या शांति का, दमन का शिकार तो हमेशा महिलाए ही होती है | वे कही भी सुरक्षित नहीं है चाहे घर हो या बाहर क्योकि हमार समाज पुरुषसत्तात्मक व मनुवादी विचारो का पोषक है जिसके कारण सामान्य वर्ग की महिलाए जहाँ लिंग आधारित भेद भाव का शिकार है वहीं पर दलित महिलाये तीन प्रकार के दमन का शिकार होती है – जाति आधारित निम्न स्तरीयकरण के कारण, गरीबी के कारण और पितृसत्ता मूल्यों के कारण| जातिवादी, साम्प्रदायिक फाँसीवाद और नवउदारवादी नीतियों के कारण टूटी हुई महिलाओ की एवं महिला अधिकारों के लिए कटिबद्ध पुरुषो की व्यापक एकता के बिना महिला मानवाधिकारों की स्थापना संभव नहीं है |

काशी विद्यापीठ की उर्दू विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर शाईना रिजवी जी ने कहा कि अपने श्रम और हुनर से समाज का विकास करने एवं उसे सजाने सवारने में अपना योगदान देने वाली सभी जाती और धर्म की महिलाओ को कोइ अधिकार नहीं प्राप्त है उल्टे उनकी हाशिये की स्थित का भी फायदा उठाकर पुरुष समाज अपने आप पर गौरान्वित महसूस करता है | इन समुदायों से सम्बद्ध महिलाओ के साथ इतने बड़ी संख्या में अधिकार हनन और हिंसा की घटनाये होती है लेकिन पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था के भी पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के करण बहुत कम अपराधियों को ही सजा मिल पाता है| जिसके कारण महिलाओ पर शोषण और अत्याचार करने वाले पुरुष समाज के लोगो का मनोबल हमेंशा ऊँचा रहता है |

काशी विद्यापीठ की समाज कार्य विभाग की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डा0 भावना वर्मा ने कहा कि एक तरफ तो स्वतंत्र समाज में ही केवल महिलाओ की स्थिति खराब ही नहीं बद्दतर है बल्कि जेलों में बंद महिलाओ की स्थिति और भी बद्दतर है | जेलों में बंद ये महिलाएं क़ानूनी मदद के आभाव में लम्बे समय तक अपने परिवारों से दूर रहने को बाध्य हैं | कई महिलाएं जिनके साथ उनके छोटे बच्चे भी जेलों में ही है और जरूरी देखभाल और परिवार से दूर अपना बचपन बिताने को विवश हैं | एक बार जेल गयी महिला को अपने ही परिवार और समाज से बहिष्कार का दंश झेलना पड़ता है |

इसी कड़ी में आगे मानवाधिकार जननिगरानी समिति के महासचिव डा0 लेनिन ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि महिलाओ का केवल शोषण नहीं हुआ है बल्कि उन्हें पुरुषवादियों द्वारा हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है, चाणक्य द्वारा विषकन्या बनाने की कहानी यही कहती है | आज सभी महिलाये एवं महिला अधिकारों के लिए संघर्षशील पुरुष बलात्कार की संस्कृति के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे है क्योकि पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित साम्प्रदायिक फांसीवाद पर हम सवाल खडा कर सके | जब इस्लामी साम्प्रदायिक फांसीवादी ताकतें मलाला को लड़कियों को शिक्षा देने की पैरवी करने से नाराज होकर गोली मार सकते है वही दूसरी तरफ हिन्दू सांप्रदायिक फांसीवाद ताकतों के दिशानिर्देशक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने निर्णय लेने वाली कमेटी में आज भी महिलाओ को भागीदारी नहीं दे सका है |

सम्मेलन के अगले क्रम में मानवाधिकार जननिगरानी समिति की प्रोग्राम डायरेक्टर शिरीन शबाना खान ने कहा कि बलात्कार की घटना महिला के विकास को सीमा में बांधने उसे सबक सिखाने उसके अस्तित्व को कुचल देने की मंशा से किया जा रहा है | समाज में महिला या पुरुष में से किसी के भी द्वारा किसी भी प्रकार के शोषण, अत्याचार, गैरबराबरी के खिलाफ आवाज उठाने पर न सिर्फ महिला को सबक सिखाने बल्कि उस पूरी विरादरी को अपने विरोध के लिए सबक सिखाने की मंशा से किया जा रहा है | आज समाज में बलात्कार की पीड़ित को ही दोषी बनाकर उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है| आज ऐसी पीड़ित महिला को अस्पताल से लेकर थानों तक और उसके बाद न्यायालय में भी पितृसत्तात्मक सोच के कारण बार बार जलालत झेलनी पड़ती है | बहुत सी रेप की घटनाए तो इसलिए सामने नहीं आती है क्योकि समाज उन महिलाओ को ही दोषी करार देता है और फिर उनका सामजिक अस्तित्व ख़त्म हो जाता है इसलिए महिलाये चुप रह जाती है |

इसी कड़ी में मानवधिकार जननिगरानी समिति के वरिष्ठ कार्यकर्ता मंगला प्रसाद ने कहा कि आज भी महिलाओ के स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ख़राब है, सरकार द्वारा कई सरकारी योजनाये संचालित की है लेकिन वास्तविकता तो यह है कि यह सेवाओ तक उनकी पहुचं ही नहीं है | इसका सबसे बड़ा उदाहरण NRHM योजना है | जिसमे महिलाओ के लिए विभिन्न लाभकारी सेवाओ का प्राविधान है लेकिन महिलाओ को इस सन्दर्भ में कोई जानकारी ही नहीं है | स्वास्थ्य देखभाल सेवाओ को महिलाओं तक पहुचाने में लगे स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी जातिवादी सोच का शिकार होते हैं | जिसके कारण वे दलित, पिछड़ी, आदिवासी महिलाओं तक इन सेवाओ को पहुचाने में भेदभाव करते है | परिणामस्वरूप आज भी मात्री मृत्यु की दर में बहुत कमी नही आई है | महिलाए किशोरिया खून की कमी, न्यून पोषण से पीड़ित हैं |

ग्राम्या संस्था की सचिव सुश्री बिंदु सिंह ने कहा कि महिलाओ को चौतरफा हिंसा का शिकार होना पड़ता है एक तो महिला होने के नाते वह दोयम दर्जे की जिन्दगी जीने को मजबूर है और वही उसे जाति विशेष का होने के कारण यह यातना और ज्यादा झेलनी पड़ती है | आज महिलाये सुरक्षित नहीं है लेकिन सबसे ज्यादा जो जाति में पिछड़ी, दलित है वो और ज्यादा असुरक्षित है | विभिन्न सर्वे के आंकड़े यह बताते है कि ज्यादातर महिला हिंसा के केस गाँव में ही होते है और वो भी दलित, पिछड़ी जातियों की महिलाओ के साथ | जब कोइ महिला अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती है तो उसे पहले उसके महिला होने के नाते रोका जाता है फिर उसके जाति विशेष होने के नाते रोका जाता है | जो भी न्याय दिलाने की इकाई है वह सभी मिलकर ऐसी महिलाओ की आवाज को दबाने का काम करते है |

सम्मेलन में महिला हिंसा के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखने और निडर होकर उनके खिलाफ आवाज उठाने के लिए सावित्री बाई फूले महिला पंचायत एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने सोनभद्र की तेरह वर्षीय कंचन और साहस के साथ संघर्ष करते हुए मृतक मनीषा के माता-पिता श्री. रामजतन एवं आशा और चंदौली के मावन अधिकार कार्यकर्ता श्री. रामप्रसाद भारती को दलित महिलाओं के अधिकारों के समर्थन और सतत संघर्ष में अतुलनीय योगदान के लिए जनमित्र से सम्मानित किया | इस कार्यक्रम में कंचन और मनीषा के परिवार को यातना के विरोध में संघर्ष जारी रखने के लिए रुपये 5000-5000 का आर्थिक सहयोग दिया गया

इस कार्यक्रम में विभिन्न स्तरों पर महिलाओ के साथ की गयी बैठकों व उनसे चर्चा परिचर्चा के बाद महिलाओ की निकली समस्याओं के समाधान हेतु ज्ञापन तैयार किया गया जिसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व U N Women Cell व सभी सांसदों को भेजा जाएगा |
कार्यक्रम का संचालन सावित्री बाई फूले महिला पंचायत की संयोजिका श्रुति ने किया | धन्यवाद ज्ञापन सावित्री बाई फूले महिला पंचायत की सदस्या फरहत शबा खानम ने दिया |

Post by PVCHR.

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